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Tuesday, November 6, 2007

पिता
उससे बहुत ही गहरा नाता है

वही तो हमारा सबसे बड़ा दाता है
सृजक की भूमिका वह निभाता है
पिता तो बस पिता होता है
वही हमें दुनिया दिखलाता है
ऊँगली पकड़ कर चलना सिखलाता है
अपने बच्चे को बोलना बतलाता है
पिता तो बस पिता होता है
नई पौध को पानी देता है
सूरज की तेज़ किरणों से उसे बचाता है
उसको कोई तकलीफ न हो

सो स्वयं ही सबकुछ सह जाता है
पिता तो बस पिता होता है
अपना पेट काट कर
हमें खाद खिलाता है
अच्छी से अच्छी सुविधा-सेवा करता है
निस्वार्थ भाव से हमारे लिए चिंतित रहता है
पिता तो बस पिता होता है
अपनी कृति के फल फूल जाने पर
वह चैन की एक सांस ले पाता है
सोचता है,
अब उसे क्या ग़म
बडे हो चुके होते हैं हम
अपनी आराधना पर मंद-मंद मुस्काता है
पिता तो बस पिता होता है
लेकिन होता है वही
जो हमेशा होता है

नए के आने पर पुराना उपेक्षित हो जाता है
भूल जाती है उसे नव पीड़ी
और भुला देती है उसके बलिदानों को

उनको मालूम न होता है कि
पिता तो बस पिता होता है
हमें अपना समझ कर
क्षमा पे क्षमा किये जाता है वो
और एक दिन बिना कुछ कहे -सुने
हमें अकेला छोड़ चला जाता है वो
तब हमें याद आता है कि
पिता तो बस पिता होता है
एक दिन हम भी पिता बनते हैं
जो उसने हमारे लिए किया था
वही हम नए के लिए करते हैं
फिर हमारे साथ भी वही होता है
क्योंकि,
पिता तो बस पिता होता है
--अमित सागर

Monday, November 5, 2007

एक शेर

फलक देता है जिनको ऐश
उनको गम भी होते हैं
जहाँ बजते हैं नक्कारे
वहाँ मातम भी होते हैं
--अज्ञात

Sunday, November 4, 2007

लक्ष्य
जीवन का लक्ष्य एक है मेरा
कुछ हासिल करना है
बुलंदियों को छूना है
बस जो चाहता हूँ
वो कर दिखाना है
मंजिल तो दिख रही
पर दूर है
रास्ते काटों से भरपूर हैं
फिर भी लक्ष्य पाना तो है ही
एक दिन शिखर पर जाना
तो है ही
सिर्फ एक प्रयास कि जरूरत है
वह प्रयास हो मेहनत का
लक्ष्य पाने कि सच्ची लगन का
हर बाधा पार करने के जूनून का
तो फिर क्या दुर्जय रह जाएगा
सबकुछ,
ये पृथ्वी, ये आकाश
मेरा हो जाएगा
--अमित सागर

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I am Amit Sagar living presently in New Delhi originally from Patna.