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Tuesday, September 29, 2009

तू जो साथ नहीं

रात के तीन बज रहे थे
नींद कहीं नहीं थी
थी तो बस एक मायूसी
इश्क और दर्द भरे गीत
सुन रहा था मैं उस वक्त
बस याद आ गई तुम्हारी
और वो दिन जब रोज़ तुमको
मैं देखा करता था
दर्द और बेबसी इतनी बढ़ गई की
मैं मजबूर हो गया
एल्बम से तुम्हारी तस्वीर निकलने को
तस्वीर निकली और
एकटक उसे देखता रहा
जब आँखों में आंसू आ गए
तो तुम्हारी तस्वीर सीने से लगा ली
और खूब रोया
और कुछ भी तो नहीं कर सकता था मैं
वो गीत अब भी कानो में पड़ रहे थे
जो दिल को छेद रहे थे
और रूह को भेध रहे थे।
अमित सागर

तन्हाई

जब कोई किसी से जुदा हो हो , जुदाई हो
जब अकेलापन हो, कोई साथ नहीं
जब किसी से कुछ कहने का दिल करे
और वो बात दिल में ही दबी रह जाए
लफ्ज़ लबों में ही उलझ कर रह जाएँ
जब वक्त कटता नहीं
और लम्हा गुज़रता नहीं
जब पल-पल एक टीस सी उठती हो
और दर्द बढ़ता हो
बेचैनी बढती हो
जब कहीं मन नहीं लगता
और जिंदगी बोझ सी लगती है
जब रोने का जी करता हो
और आंसू थमते नहीं
जब रातों को नींद नहीं आती
और किसी की याद जेहेन से
एक पल को भी नहीं जाती
जब जहाँ जशन में डूबा हो
और कहीं वीरानी हो
जब गुज़रा हुआ वक्त कभी न भुला जाए
और फिलवक्त हमेशा डराए
जब कदम लड़खराए
वजूद हिल जाए
और अपने याद आ जाएँ
वही तो तन्हाई है
हाँ यही तो तन्हाई है

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I am Amit Sagar living presently in New Delhi originally from Patna.