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Saturday, February 21, 2009

सौ बार जीता सौ बार मरता हूँ
कैसे ऐतबार दिलाऊं तुमको
कि कितना प्यार है
तुमसे हमको
रोता हूँ इसलिए
कि तुम समझ न सकीं
मुझको मेरे प्यार को
जीता हूँ इसलिए कि
कभी न कभी पा सकूँ
तुमको, तुम्हारे प्यार को
जुदा हूँ तुम से मैं आज
और ये जुदाई
दर्द देती है इतना के
जितना मैं सह न सकूँ
फिर भी प्यार तुमसे मैं करता हूँ
एक एक पल में

सौ बार जीता हूँ, मरता हूँ
----
अमित सागर

जिंदा किस लिए हूँ ?
मैं जिंदा किस लिए हूँ ?
बस तेरे लिए
बस तुझे पाने के लिए
और जो तुझे न पा सका
तो जी के क्या होगा
मरना ही शायद तब भला होगा
क्यूंकि सह न पाउँगा फिर तेरी जुदाई मैं
तड़प के रह जाऊँगा तेरी तन्हाई में
बिरहा की अग्नि में जल जाऊँगा
मैं तो बस मर जाऊँगा
ए मेरे खुदा -
जीते जी मत मारना मुझे
अच्छा होगा मेरी प्रिया
दे देना मुझे
साँसे मेरी लौटा देना मुझे
इश्क की दुहाई है तुझे
वरना कोई न फिर
तुझे से प्यार की भीख मांगेगा
बस प्यार की तड़प में अपनी जान देगा
मत करना नाइंसाफी मेरे साथ
रख देना मेरे सर पे तू अपना हाथ
दे देना उसे मुझे तू
दिल मेरा देगा तुझे दुआएं लाख
जलती रहेंगी तब तक
मेरे दिल में उम्मीदें
जब तक दे नहीं देता
उसे मुझे तू
-----अमित सागर

चकनाचूर हो गया
जिंदगी में एक वाक्य सा हो गया
लगता है जैसे कहीं कुछ खो गया ll
वो दिन, वो पल बहुत याद आते हैं
पर कहाँ वापिस आएगा एक बार जो गया ll
जी लेता हूँ कभी-कभी, उन यादों को याद कर
पर कब तक जी सकूंगा, जब अपना ही बेगाना हो गया ll
कोशिश तो बहुत की थी, की सपनों को सच कर दूँ
पर हसरतों को हकीक़त में बदलना ही एक सपना सा हो गया ll
माना जिंदगी ने हमें बहुत कुछ दिया, हमनें भी बहुत कुछ किया
पर जो आशियाँ था मेरा, जो जहाँ था मेरा, चकनाचूर हो गया ll
अमित सागर

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I am Amit Sagar living presently in New Delhi originally from Patna.