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Thursday, November 1, 2007

मंज़िल
जिंदगी कि राह पर चल पड़े हम अकेले
न लिए खुशियाँ न गम
बस थे यादों के मेले
चलते-चलते उस राह पर
थके हमारे कदम
हम रुके फिर उठे और कहा
खुद से पूछा -
"क्या इतना ही है दम ?"

नज़रें उठा के देखा तो
मंज़िल थी बहुत दूर
राह के कंकरियों ने
किया हमारा हौसला चूर
अभी तो आगे थे
चट्टान और तूफान
बस हवा के झरोखे ने किया
हमें हमारे हमारे पथ से अनजान

हमने मन को समझाया
कर याद बीते पलों का
हमने मन को बहलाया
और कहा
जिस तरह इतनी दूर आयें हैं
आगे भी चले जायेंगे
अगर रुके और पड़े कमज़ोर
तो दुसरे पथिक आगे निकल जायेंगे

जिंदगी कि राह
आसान नहीं होती
पर हो हौसला साथ
तो मंज़िल दूर नहीं होती
जो लोग हिम्मत और
विवेक कि कुंजी लिए होते हैं
वही यथार्थ में मंज़िल रुपी
दरवाज़े तक पहुँच पाते हैं
डरपोक और अविवेकी तो
खाली हाथ लॉट जाते हैं

--प्रियंका

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I am Amit Sagar living presently in New Delhi originally from Patna.