only 4 u

For those who love someone and want to express their love to the world.

Thursday, January 12, 2012

चीखने चिल्लाने से कुछ नहीं होता
 
रोने सर-पीटने से कुछ नहीं होता

 
सहम जाने, गुमसुम हो जाने से कुछ नहीं होता 


डिप्रेस हो के दारू पीने से भी कुछ नहीं होता 


पर ये सब हो जाता है

 
सिर्फ प्यार हो जाने से !!


     द्वारा- आकाश कुमार, C.I.L, J.N.U

Tuesday, October 6, 2009

तू









हिंदुस्तान से पाकिस्तान तक
dilli से डेरा गाजी खान तक
न सुना ऐसा
न देखा ऐसा
पाया तुझे जैसा
cleopatra,
न वेनिस
न ताज,
न मोर,
तेरे जैसा नहीं है कुछ और
हिमालय की घाटियों में
कश्मीर की वादियों में
चाँद की चाँदनी में
sheeraaz की रोशनी में
जैसे तेरा ही हुस्न
बिखरा, समाया है
इस जमीं का जन्नत
बनकर तू आया है
उपरवाले ने भी क्या खूब
तुझे बनाया है
बादामी चेहरा
मरिआना से भी गहरी आँखें
अमावास से भी काली जुल्फें
अदा मासूमियत से भरा
जैसे न हो तुझ में कुछ भी बाकी
कहता है ये शायर
पूरी कायनात में कोई नहीं
जो हो तुझ सा
और कोई नहीं
जो हो तेरा दीवान
मेरे से बड़ा, मुझ सा
अमित सागर

Tuesday, September 29, 2009

तू जो साथ नहीं

रात के तीन बज रहे थे
नींद कहीं नहीं थी
थी तो बस एक मायूसी
इश्क और दर्द भरे गीत
सुन रहा था मैं उस वक्त
बस याद आ गई तुम्हारी
और वो दिन जब रोज़ तुमको
मैं देखा करता था
दर्द और बेबसी इतनी बढ़ गई की
मैं मजबूर हो गया
एल्बम से तुम्हारी तस्वीर निकलने को
तस्वीर निकली और
एकटक उसे देखता रहा
जब आँखों में आंसू आ गए
तो तुम्हारी तस्वीर सीने से लगा ली
और खूब रोया
और कुछ भी तो नहीं कर सकता था मैं
वो गीत अब भी कानो में पड़ रहे थे
जो दिल को छेद रहे थे
और रूह को भेध रहे थे।
अमित सागर

तन्हाई

जब कोई किसी से जुदा हो हो , जुदाई हो
जब अकेलापन हो, कोई साथ नहीं
जब किसी से कुछ कहने का दिल करे
और वो बात दिल में ही दबी रह जाए
लफ्ज़ लबों में ही उलझ कर रह जाएँ
जब वक्त कटता नहीं
और लम्हा गुज़रता नहीं
जब पल-पल एक टीस सी उठती हो
और दर्द बढ़ता हो
बेचैनी बढती हो
जब कहीं मन नहीं लगता
और जिंदगी बोझ सी लगती है
जब रोने का जी करता हो
और आंसू थमते नहीं
जब रातों को नींद नहीं आती
और किसी की याद जेहेन से
एक पल को भी नहीं जाती
जब जहाँ जशन में डूबा हो
और कहीं वीरानी हो
जब गुज़रा हुआ वक्त कभी न भुला जाए
और फिलवक्त हमेशा डराए
जब कदम लड़खराए
वजूद हिल जाए
और अपने याद आ जाएँ
वही तो तन्हाई है
हाँ यही तो तन्हाई है

Monday, September 7, 2009

श्रधांजलि

हमारी इस छोटी सी जिंदगी में कुछ लोग ऐसे भी आते हैं जिनकी छाप हमारे मन-मस्तिष्क पर ताउम्र के लिए रह जाती है। वो लोग कुछ ख़ास होते हैं तभी तो हमारी जिंदगी में हमेशा उनका महत्व बरकरार रहता है। किसी की दादी, किसी की नानी, किसी के पिता, किसी की बहिन, किसी का भाई, किसी के पड़ोसी अथवा किसी के शिक्षक का उसकी जिंदगी में बड़ा अहम् किरदार होता है। यह महत्व कभी सफलता, कभी अच्छे विचार, इज्ज़त, आदर-सम्मान, अथाह प्रेम के लिए होता है। वो जितना भी समय हमारे साथ बिताते हैं, उनके साथ बिताये लम्हें सदा के लिए हमारे साथ रह जाता है। हमारी अमूल्य धरोहर बन जाते हैं। और जब उनसे अलग हो कर, बहुत वक्त बीत जाने के बाद अगर हम उन लम्हों को याद करते हैं तो हम पाते हैं कि वो पल जो हमने किसी अपने के साथ जीये थे वो क्या गज़ब के पल थे! अमूल्य, अजर, अमर, अतुलनीय, करिश्माई।
सबकी जिंदगी की तरह मेरी जिंदगी में भी ऐसी ही एक शक्शियत ने कभी किसी समय प्रवेश किया था। उनसे प्रथम मुलाकात से लेकर आखिरी मुलाकात तक सबकुछ मुझे जस का तस याद है। वो मेरी हायर सेकेंडरी की शिक्षिका डॉ. इंदुमती पाठक थीं जो मुझे हिन्दी पढाया करती थीं। यह कहानी या यों कह लें की मेरी यह संस्मृति उनको मेरी ऑर से श्रधांजलि है। इस कहानी को लिखने की वजह अभी -अभी गुजरा शिक्षक दिवस है जिसने मुझे मजबूर कर दिया कि आप सब के सामने मैं अपने अनुभव को रख सकूँ। सब की तरह मुझे भी बहुत से शिक्षकों ने पढाया है और सब ने मेरी जिंदगी को किसी न किसी हद तक प्रभावित किया है पर जो प्रभाव उन्होंने मेरे व्यक्तित्व पर छोड़ा है वो अमिट है। यही वो लम्हें हैं जो मेरी बेशकीमती पूंजी हैं।
मैं उनसे ग्यारहवीं कक्षा में प्रथम बार मिला था। वो मेरी वर्ग शिक्षिका थीं। शायद इसीलिए हमसे कठोरता भरा बर्ताव करती थीं। हमारी किसी भी गलती पर वो हमे बक्क्षती नहीं थीं। हमारे अन्दर एक डर समाया रहता था कि कहीं भी कोई गलती हुई तो उनसे डांट सुननी पड़ेगी। मैं तो उनसे दो थप्पड़ भी खा चुका था। स्कूल लेट पहुँचने पर, पोशाक साफ़ और इस्त्री नहीं होने पर, बाल छोटे नहीं होने पे , और तो और जूते पोलिश न होने पर डांट पड़ती थी और वो हमें कक्षा से कान पकड़ के बाहर भी कर देती थीं। वो हमारी एक भी बात नहीं सुनती थीं। कक्षा के बिगडे से बिगडे बच्चे भी उनके सामने पानी भरते थे, भीगी बिल्ली बने रहते थे।
इसी तरह वक्त गुज़रता जा रहा था। हमलोग अब बारहवीं में आ गए थे और खुश थे कि अब इंदु मैडम वर्ग शिक्षिका नहीं होंगीं, सो कोई रोक-टोक नहीं होगी, कोई डांट नहीं, कोई डर नहीं होगा। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। इंदु मैडम फिर से हमारी वर्ग शिक्षिका नियुक्त हुईं थीं। जब हमें पता चला तो हमारी तो समझो नानी ही मर गई हो। सब के सब शोक में डूब गए। उनके रवैये में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। एक बार की घटना है। कक्षा में मैडम उपस्थिति दर्ज कर रहीं थीं। मेरा क्रमांक जब गुज़र गया तब मैं कक्षा में पहुँचा। मेरी उपस्थिति दर्ज नहीं की गयी। मैंने मैडम से कहा तो उन्होंने कहा कि तुम लेट आए हो, हाजिरी नहीं बनेगी। मुझे बड़ा गुस्सा आया। मैंने इसकी शिकायत प्रधानाचार्य से की तो उन्होंने मुझे ही उल्टा डांट दिया और कहने लगे कि मैं ही समय पर विद्यालय आया करूँ। मैं मन मसोस कर रह गया। उनका डर हर पल और अधिक गहरा होता जा रहा था। एक दिन हम अपने अंग्रेजी के शिक्षक से मैडम के बारे में बात कर रहे थे। हम ने उन्हें बताया कि हमें मैडम से बहुत डर लगता है तो वो कहने लगे कि उनको भी मैडम से बहुत डर लगता है। हम तो जैसे सकते में आ गए। बस ये ही सोचने लगे कि ये कैसी माया है, शिक्षक को भी शिक्षक का डर है।
वक्त इसी तरह गुज़रता जा रहा था। कुछ दिनों बाद मुझे ये पता चला कि मैडम ने अब तक शादी नहीं की है। इसलिए उनकी कोई संतान नहीं है। हम इसी वजह से ये सोचने लगे कि अपनी कोई संतान नहीं है तभी मैडम इतनी निष्ठुर हैं। इसीलिए उनकों बच्चों से स्नेह नहीं है, बच्चों से प्रेम नहीं है। हम उन से बहुत नफ़रत करने लगे थे। और ये चाहते थे कि कब इस जंजाल से हमारा पीछा छूटे। आख़िर विद्यालय से निकलने का वक्त आ ही गया। हमारी बारहवीं की परीक्षाएं आ गयीं थीं। मैं बड़ा खुश हुआ कि अब कोई झंझट नहीं रहेगा । दिन अब अच्छे से बीतेगा। मेरी कक्षा के सारे बच्चों ने खूब मेहनत की परीक्षा के लिए। हमने कोई कसार नहीं छोड़ी। फिर परीक्षा के बाद परिणाम आया।
मेरी कक्षा का कोई भी बच्चा फेल नहीं हुआ। सब के सब अच्छे नम्बर से पास हो गए थे।
मेरा परिणाम सबसे अच्छा था सो मैंने सोचा कि मैडम का मुंह मीठा करा देना चाहिए इतनी बड़ी खुशी जो मिली थी। और अब कोई डर भी नहीं था मैडम की डांट का। मैंने प्रथम स्थान जो पाया था परीक्षा में। मैं शाम को सीधे उनके घर गया ,साथ में मिठाई का डब्बा भी था। उनके घर पहुँचने के बाद डोरबेल बजायी तो वो वो बाहर आयीं। मुझे देख कर वो बड़ी प्रसन्न हुईं, अन्दर बुलाया और सोफे पे बैठाया। मैंने उनसे कहा कि मैडम अच्छे नम्बर लाने पर आपका मुंह मीठा कराने आया हूँ। तो वो कहने लगीं कि मैं भी तुम्हें मिठाई खिलाउंगी, तुम ही क्यूँ मैं मैं तुम्हारी कक्षा के सारे बच्चों को मिठाई खिलाउंगी , तुम सब लोगों ने मेरी नाक जो रख ली है। इसके बाद तो वो जैसे रुकने वाली ही नहीं थीं। कहने लगीं, "पता है तुम्हें कला संकाय के बच्चों को विद्यालय में सबसे ख़राब समझा जाता है ,कहीं भी कुछ भी हो तो नाम कला संकाय के बच्चों का ही लगता है। उन्हें ही बदनाम किया जाता है और मुझे भी बहुत कुछ सुनना पड़ता है कि कैसी वर्ग शिक्षिका हूँ, अपनी कक्षा के बच्चों को भी नहीं संभाल सकतीं। मुझे बड़ा दुःख होता है पर अब कोई गम नहीं है मुझे। तुमलोगों ने मेरा सम्मान बढाया है। यह साबित कर दिया है कि कला संकाय के बच्चे भी पढ़ते हैं।" वो आगे कहने लगीं "'मैं तुमलोगों को हर बात पे बुरा भला कहती थी इसलिए कि आगे चल कर तुमलोगों को कोई दिक्कत नहीं हो। आगे भविष्य में तुमलोगों को अपना ध्यान ख़ुद ही रखना होगा इस लिए डांट डांट कर तुम लोगों में अच्छी आदतें डालने की कोशिश करती थी। आगे तुमको बोलने वाला तो कोई नहीं होगा ना। तुम आत्मनिर्भर बनो इसीलिए तुम लोगों को डांट पिलाती थी। मुझे भी बच्चों को डांटना अच्छा नहीं लगता और अब भी बुरा लगता है पर उनके उज्जवल भविष्य के लिए इतना तो करना ही पड़ेगा न। कल के सुख के लिए आज तो उनको कड़वी डांट सुननी ही पड़ेगी"। अपने बारे में कहने लगीं कि उन्होंने शादी इसलिए नहीं की क्यूँ कि उनकी पढ़ाई के वक्त ही उनके पिता गुज़र गए थे और घर का सारा बोझ उनके कन्धों पर आ गया था। तब उन्होंने ये निश्चय किया था कि वो अपने भाई और बहिन, सभी को पढायेंगी और माँ का भी ख्याल रखेंगी। और आज उनके भाई बहिन ऊँचे ओहदों पर हैं और उनकी जिंदगी सुख शान्ति से कट रही है। सबका ख्याल हमेशा उन्होंने ही रखा और गलती करने पर खूब डांटा । इतना सब कहने के बाद आख़िर में उन्होंने बस इतना कहा कि हम सब ही तो उनके बच्चे हैं, उन्हें और क्या चाहिए। हमलोगों का भविष्य अच्छा हो इसीलिए तो दिन राह वो हमारे पीछे पड़ी रहती thin। अब उनको कोई चिंता नहीं है. सब अच्छे से पास हो गए हैं और सब को अच्छे कॉलेज मिल ही जायेंगे। बात ख़त्म होने पर मैं उनके चरण स्पर्श कर के बाहर निकल आया।
अब मैं रास्ते भर बस सोच रहा था। मुझे लग रहा था कि हम कितने ग़लत थे जो हमने मैडम को ग़लत समझा । मैडम की डांट तो दिखती थी पर किस वजह से वो हमें डांटा करती थीं वो नहीं दीखता था। वो हमें दो-चार खरी-खोटी सुनती थीं बस यही याद रहता था पर हमारी वजह से उनको कितना कुछ सुनना पड़ता था वो हमें पता नहीं चलता था। हमलोगों को उनका निष्ठुर व्यक्तित्व ही नज़र आता था पर उनका स्नेह पूर्ण ह्रदय कभी भी दृष्टिगोचर नहीं होता था। ये सब सोच-सोच कर मैं आत्मग्लानी से भर गया। मेरे नेत्र ही नहीं मेरा ह्रदय भी रो रहा था। पर प्रायश्चित हो तो कैसे हो? मैंने मैडम की सच्चाई अपने सारे सहपाठियों को बता दी। वो भी पश्चात्ताप में डूब गए। सबके दिल में उनके प्रति आदर और सम्मान अंकुरित हो गया। उस दिन के बाद मैंने किसी को मैडम के बारे में कुछ भी बुरा कहते हुए नहीं सुना। मैंने उसी वक्त उन्हें दिल से अपनी दूसरी माँ मान लिया था।
आज इस घटना को ३ साल बीत गए हैं पर एक भी दिन को मैं उन्हें भूला नहीं हूँ। मैं इश्वर से बस यही प्रार्थना करता हूँ कि सबको ऐसी ही शिक्षिका या शिक्षक मिलें जो उसके चरित्र और भविष्य की चिंता करती हों या करते हों और अप्रत्यक्ष रूप से उसका सहयोग करते हों उसे एक अच्छा इंसान बनने में। सबको ऐसे गुरु नसीब हों। उन महान विभूति को सत-सत प्रणाम।
अमित सागर
तृतीय वर्ष
इतिहास (प्रतिष्ठा)


Friday, July 17, 2009


एक शेर


याद तुझे दिल करता है

टप-टप आँसू बहते रहते हैं

हर याद पे एक ज़ख्म उभरता है

पर वक्त के साथ हर घाव भरता है

लोग तो हमेशा यही कहा करते हैं

पर लोग नहीं

इंकार और जुदाई का दर्द बस दिलजले ही सहा करते हैं

Thursday, July 16, 2009

दर्द है कितना
दर्द है इतना मुझको
फ़िर भी कह नहीं सकता मैं तुझको
तन्हाई क्या होती है ?
समझ लो बस जीने नहीं देती है
बीच भंवर में कश्ती का साथ जब छुटा
एक तिनका मिला
बदकिस्मती अपनी
वो तिनका भी किसी और का निकला

काटना नहीं ये पहाड़ सा वक़्त
हर लम्हा लगता है पत्थर सा सक्त
डर है मुझको
कहीं मैं भी पत्थर न बन जाऊं
इन पथरीले लम्हों के बीच
अब बाकी बचा न वो एहसास
जिन्दा रख सकूँ मैं जिस से
अपने दिल को सींच

जो साथ था कारवां मेरे
वो तो कभी का ,कहीं छूट गया
मैंने शायद गलती की
राहों को चुनने में
तभी तो मेरा घरौंदा
मुझी से रूठ गया

अब क्या करूँ मैं
समझ नहीं आता
सोच के देखो
मेरा दर्द-ऐ-दिल और क्या गाता
--अमित सागर



Wednesday, July 15, 2009

क्षमा करें
मुझे माफ़ कर दें वेद भाई ये सिर्फ़ एक रचना है
और कुछ नहीं ये मेरे प्यार की अनुभूति नहीं बल्कि
बस एक ख्याल था की कोई काम में कितनी हद तक
धंस सकता है । बस इसे अन्यथा मत लें रचना समझ कर ग्रहण करें।
धन्यवाद्
अमित सागर

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I am Amit Sagar living presently in New Delhi originally from Patna.